-: जीवन का झरना :-
:-आरसी प्रसाद सिंह
यह जीवन क्या है? निर्झर है, मस्ती ही इसका पानी है।
सुख-दुख के दोनों तीरों से, चल रहा मनमानी है।।
कब फूटा गिरी के अंतर में, किस अंचल से उत्तरा नीचे?
किस घाटी से बह कर आया, समतल में अपने को खींचे।।
निर्झर में गति है, यौवन है, वह आगे बढ़ता जाता है।
धूम सिर्फ एक है चलने की, अपनी मस्ती में गाता है।।
बाधा के रोड़ों से लड़ता वन के पेड़ों से टकराता।
बढ़ता चट्टानों पर चढ़ता, चलता है यौवन से मदमाता।।
लहरें उठती है, गिरती हैं, नाविक तट पर पछताता है।
तब यौवन बढ़ता है आगे, निर्झर बढ़ता ही जाता है।।
निर्झर में गति है, जीवन है, रुकरुक जाएगी यह गति जिस दिन।
वह दिन मर जाएगा मानव, जग दुर्दिन की घड़ियां गिन गिन।।
निर्झर कहता है-बढ़े चलो, तुम पीछे मत देखो मुड़कर।
यौवन कहता है- बढ़े चलो, सोचो मत क्या होगा चलकर।।
चलना है केवल चलना है, जीवन चलता ही रहता है।
मर जाना है रुक जाना ही, निर्झर यह झरकर कहता है।।
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