जेबकतरा(a short story)

                  :-  जेबकतरा -:

                             :- ज्ञानप्रकाश विवेक जी


                बस से उतरकर जेब में हाथ डाला। मैं चौक गया। जेब कट चुकी थी। जेब में था भी क्या? कुल ₹9 रुपए और एक खत, जो मैंने मां को लिखा था की मेरी नौकरी छूट चुकी है। अभी पैसे नहीं भेज पाऊंगा...। 3 दिनों से वह पोस्टकार्ड जेब में पड़ा था। पोस्ट करने को मन ही नहीं कर रहा था।😥😥
                ₹9 जा चुके थे। या ₹9 कोई बड़ी रकम नहीं थी, लेकिन जिसकी नौकरी छूट चुकी हो उसके लिए ₹9 900 से कम नहीं होते।
               कुछ दिन गुजरे मां का खत मिला। पढ़ने से पूर्व मैं सहम गया। जरूर पैसे भेजने को लिखा होगा। लेकिन खत पढ़कर मैं हैरान रह गया। मां ने लिखा था-"बेटा तेरा भेजा ₹50 का मनी आर्डर मिल गया है। तू कितना अच्छा है रे... पैसे भेजने में कभी लापरवाही नहीं बरतता।"
               मैं इसी उधेड़बुन में लग गया कि मां को मनीआर्डर किसने भेजा होगा?😨😨😨
              कुछ दिन बाद एक और पत्र मिला। चंद लाइनें थी आड़ी तिरछी। बड़ी मुश्किल से खत पढ़ पाया।
              लिखा था "भाई₹9 तुम्हारे और ₹41  अपनी ओर से मिलाकरमिलाकर मैंने तुम्हारी मां को मनी ऑर्डर भेज मनी ऑर्डर भेज दिया है। फिकर मत करना ... मां तो सबकी एक जैसी होती है। वाह क्यो भूखी रहे?"........ तुम्हारा "जेबकतरा"।।।😳
                   😊😊😊😊😊😊😊😊😊😊

Comments